अनदेखी का शिकार कोटा बैराज: 65 साल पुराना, मरम्मत के लिए तरस रहा

राजस्थान के कोटा में स्थित कोटा बैराज की रेलिंग जर्जर हालात में हैं. उसके अंदर पड़ी सरिया तक साफ दिखाई देने लगी है. जल संसाधन विभाग बैराज की मरम्मत और सुरक्षा पर ध्यान नहीं दे रहा है. यहां तक की गेट की भी मरम्मत नहीं करा रहा है. इतना ही नहीं कई वर्षों से बैराज पर बने पुल पर आवाजाही बंद है. उसके बाद भी इस टूटी-फूटी रेलिंग पर कई लोग बैराज के गेटों को देखते हुए नजर आते हैं, जो कि कभी भी बड़े हादसे को न्योता दे सकती है. इस पर प्रशासन बिल्कुल भी ध्यान नहीं दे रहा है.
हाड़ौती के सबसे बड़े और सबसे पुराने कोटा बैराज 64 वर्षों से दाईं और बाई मुख्य नहरों के जरिय से राजस्थान और मध्य प्रदेश की 6.50 लाख हेक्टेयर भूमि को सिंचित करने में मददगार रहा है. इस बैराज से कोटा सहित बूंदी और भीलवाड़ा शहर की प्यास बुझा रहा है. कोटा सुपर पावर थर्मल को बिजली बनाने में मदद कर रहा है. उत्तरी ग्रिड रोशन हो रहा है. उसके बावजूद इसके रख-रखाव पर पिछले 15 वर्षों से किसी भी तरह का ध्यान नहीं दिया जा रहा है. जबकि साल-दर-साल इसकी हालत खस्ता होती जा रही है.
टूटी रेलिंग का सहारा लेते हैं लोग
फिलहाल जिस तरीके से बारिश लगातार हो रही है पीछे से पानी की आवक भी लगातार बढ़ती जा रही है और मौसम विभाग की चेतावनी को देखते हुए लगातार बैराज के गेट खुलने के कारण यहां आने जाने वालों का तांता लगा रहता है. इस दौरान उसी टूटी रेलिंग के ऊपर झुक कर खुले हुए गेटों को देखते हैं, कहीं ऐसा ना हो किसी दिन रेलिंग टूट जाए और बड़ा हादसा हो जाए.
खस्ता हाल पर उठ रहे कई सवाल
जिस तरीके से रेलिंग के दृश्य दिख रहे हैं उस हिसाब से इसकी खस्ता हालत का अंदाजा लगाया जा सकता है जो की बेहद चिंता जनक है. इसके बाद भी अभी तक सबसे बड़ा सवाल है कि 65 सालों में क्यों इसका पुनः निर्माण नहीं किया गया. जबकि मात्र 300 मीटर दूरी पर ही 1400 करोड़ रुपए लगाकर रिवर फ्रंट का निर्माण किया गया. क्या कांग्रेस की सरकार में इस जगह के लिए 14 करोड़ भी नहीं या फिर कांग्रेस सरकार ने इस और ध्यान देना उचित ही नहीं समझा.
वर्षों से नहीं खुले गेट
जल संसाधन विभाग को इसकी मरम्मत का पर्याप्त बजट नहीं मिलने से बांध के 19 गेटों की रिपेयरिंग नहीं हो पा रही है. इसके सबसे अहम 2 स्लूज गेट बरसों से खुले ही नहीं और अब इस स्थिति में आ गए कि यदि खोल दिया तो संभवतः बंद नहीं हो सके. ऐसे में पूरा बांध खाली हो जाएगा. गेट के लोहे के रस्सों पर भी जंग लग चुका है. चंबल परियोजना के तहत चंबल नदी पर गांधीसागर, जवाहरसागर व राणाप्रताप सागर बांध के बाद वर्ष 1954 में कोटा बैराज का निर्माण शुरू किया गया था.